उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्पष्ट आदेशों को दरकिनार कर नजूल विभाग के लेखपाल रामवृक्ष मौर्य पर सरकारी जमीनों पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे कराने के गंभीर आरोप लगे हैं। सूत्रों के अनुसार, मौर्य का प्रभाव इतना व्यापक है कि वह बिना किसी प्रशासनिक भय के उदय चौराहा से लेकर चक्कर तीर्थ और प्रधानमंत्री आवास योजना टेढ़ी चौराहा क्षेत्र तक सरकारी जमीनों पर कब्जे करवाने में सक्रिय हैं। इसमें कुछ बड़े भू माफियाओं की भी अहम भूमिका बताई जा रही है।
सूत्रों का कहना है कि यदि रामवृक्ष मौर्य की सही तरीके से जांच हो जाए, तो कई करोड़ की सरकारी जमीन को अवैध रूप से लोगों को काबिज कराने की सच्चाई सामने आ सकती है। ऐसा संदेह है कि उन्होंने अपने करीबी लोगों को भी इस अवैध खेल में शामिल किया है। इस वजह से सरकारी राजस्व को भारी नुकसान हुआ है, लेकिन विभागीय अधिकारियों को इसका कोई डर नहीं है।
रामवृक्ष मौर्य का प्रभाव इतना अधिक है कि यदि कोई स्थायी पत्रकार उनके खिलाफ लिखने की कोशिश करता है, तो वे संपादकों को अपनी मीठी बातों में उलझाकर संबंधित पत्रकार को अखबार से निकालने तक का प्रयास करते हैं। यह एक बड़ा सिंडिकेट है, जिसके कारण लोग इनके खिलाफ खुलकर बोलने से डरते हैं।
जब कोई व्यक्ति डीएम या एसडीएम के पास जाकर सरकारी जमीनों पर हो रहे अवैध कब्जों की शिकायत करता है, तो मौर्य केवल औपचारिकता निभाने के लिए थाना पूर्ति करवा देते हैं। इसके बाद वे कब्जा करने वालों को खुला इशारा देते हैं कि “जल्दी काम खत्म कर लो, जब तक हम हैं, कोई दिक्कत नहीं होगी।” इसी तरह, उन्होंने कई करोड़ की सरकारी जमीन पर सैकड़ों मकान, होमस्टे, होटल और रेस्टोरेंट बनवा दिए हैं, और यह काम अभी भी जारी है।
जब ये सभी निर्माण तैयार हो जाते हैं और लोग उनका उपयोग करना शुरू कर देते हैं, तो जब सरकार उनपर कब्जा करने जाती है तो उस पर उंगलियां उठने लगती हैं। लेकिन सवाल यह है कि इन कब्जों के पीछे पहले हाथ किसका था? यह भू माफिया, भ्रष्ट अधिकारियों और फिर उन लोगों का है, जिन्होंने सस्ती जमीन के लालच में आकर बिना यह सोचे समझे कि यह सरकारी संपत्ति है, यहां अपनी जीवनभर की पूंजी लगा दी। ऐसे लोगों को पहले यह सोचना चाहिए था कि क्या यह संपत्ति सही है? भू माफिया ने अपना काम किया, भ्रष्ट अधिकारियों ने अपना काम किया, लेकिन अंत में आम नागरिक ही फंसते हैं।
सूत्रों का कहना है कि अयोध्या में लगभग 30 से 40% सरकारी भूमि पर अवैध रूप से लोगों ने कब्जा कर लिया है, और यह कब्जा राजस्व विभाग और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ है। यह कब्जा सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है, क्योंकि कई लोग अब इन सरकारी भूमि पर अवैध रूप से बस चुके हैं।
आम नागरिक से भी निवेदन है कि वह इस तरह के साजिशों से बचें, क्योंकि ऐसे सिंडिकेट की सजा उन्हें भुगतनी पड़ती है। मुख्यमंत्री और अयोध्या के डीएम साहब से भी निवेदन है कि जितनी भी सरकारी भूमि अब तक अर्धनिर्मित है, जिस पर निर्माण कार्य चल रहा है या जो खाली पड़ी हुई है, उन्हें शीघ्र अपने कब्जे में लेकर वहां बोर्ड लगा दिया जाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह सरकारी संपत्ति है और आम जनता में कोई भ्रम न पैदा हो।
इसके साथ ही, जिन लोगों ने अवैध रूप से सरकारी भूमि पर मकान, होटल, रेस्टोरेंट, होमस्टे आदि बना लिए हैं, उन्हें नोटिस भेजा जाए और पूछा जाए कि वे इस भूमि पर कैसे पहुंचे और किसके संरक्षण में आए। इसके बाद, उन अधिकारियों और माफियाओं पर कार्रवाई की जाए जिन्होंने इन्हें यह भूमि उपलब्ध कराई। इसके बाद, जमीन के हिसाब से सर्किल रेट के अनुसार आम नागरिकों से शुल्क वसूला जाए।जो भूमि अभी बची हुई है, उसे बचाना बहुत जरूरी है। यही मेरी प्रार्थना है कि इस मामले की गंभीरता से जांच की जाए और बची हुई सरकारी भूमि की रक्षा की जाए।