बिहार में 12 करोड़ आबादी है.. मेडिकल इंडस्ट्री के लिए भारत के बड़े बाजारों में एक है…_
_अकेले दवा का घरेलु बाजार प्रति वर्ष डेढ़ लाख करोड़ का है. डॉक्टरों की फी… अस्पतालों के खर्च संबंधी टर्नओवर अलग से है…._
_एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 तक हेल्थकेयर इंडस्ट्री का टर्नओवर 8.6 ख़रब रूपये होने का अनुमान है….._
_मेडिकल इंडस्ट्री प्रति वर्ष 14-16% की दर से आगे बढ़ रही है…._
_बारह करोड़ की आबादी वाले बिहार के हिस्सेदारी का अनुमान लगा लीजिये…. आंकड़े फिर कभी देंगे!_
_महाराष्ट्र के अलावा ज्यादातर राज्य जैसे राजस्थान,बिहार की मेडिकल इंडस्ट्री में डायवर्सिटी बिलकुल भी नहीं है…_
_फर्मास्यूटिकल मार्केट में भूमिहार, ब्राम्हण, राजपूत, बनिया का दबदबा है…_
_बिहार में दवा कंपनियों के लगभग पचास हजार सेल्स रिप्रजेंटेटिव काम कर रहे है….अनुमानित एक लाख के आसपास दवा की दुकानें होगी…_
_जांच घरों की भी बड़ी संख्या है…_
_बिहार में कुछ दशक पहले मार्केटिंग में बंगालियों का दबदबा था, फिर कायस्थों का दबदबा हुआ, कायस्थों को भी अब भूमिहार ओवरटेक कर चुके है….._
_राजपूत भी इन तीन जातियों के सामने पिछड़ रहा है…_
_दरअसल दवा कंपनियों में सेल्स में नौकरी किसको मिलेगा इसका एंटीना जोनल मैनेजर से जुडा हुआ है…._
_जोनल मैनेजर अमूमन अपनी जाति का रीजनल मैनेजर नियुक्त करता है. फिर रीजनल मैनेजर सेल्स की टीम को जाति के हिसाब से ही बहाल करता है…_
_मगध प्रमंडल के एक बड़े शहर में फर्मास्यूटिकल मार्केट में काम करने वाले साथी बताते है कि की उनके शहर में लगभग एक हजार मेडिकल की दुकाने होंगी…जिनमे से बैकवर्ड की दो-चार दुकानें ही नजर आती है…_
_यदि आप भूमिहार, ब्राम्हण है तो कई ऐसे घाघ डॉक्टर है जहाँ आपको जाकर पैर छूकर प्रणाम करना होता है…._
_फिर गाँव का नाम पूछा जाएगा…_
_गाँव का नाम बताते ही डॉक्टर आपकी जाति का अनुमान लगा लेंगे…. और आपको पूर्ण सहयोग शुरू हो जाता है…._
_सेल्स से जुड़े भूमिहार और ब्राम्हण जातियों के युवाओं में आधे से अधिक ऐसे है जिनके पास शिक्षा का भी मानदंड पूरा नहीं करते है…._
_हालत यह है कि फर्मास्यूटिकल कंपनियों के सेल्समैनों के असोशिएशन में भी इन उच्च जातियों के आधार पर ही कई फाड़ हो चुके है…._
_वर्चस्व की इस लड़ाई में 5-7 प्रतिशत वाले बैकवर्ड जातियों की औकात शून्य है…._
_इस बाजार में कोई दलित दिख जाए तो समझिएगा कि गधे के सिंग के दर्शन हो गये है…._
_अब सवाल उठता है कि भारत में प्रति व्यक्ति मेडिकल पर सरकारी खर्च 1657 रुपये है….._
_निजी स्तर पर यह खर्च लगभग 4500 रुपया प्रति वर्ष है….और इतने बड़े बाजार में पिछड़े दलितों की भागीदारी नगण्य है…_
_बिहार में अकेले यह इंडस्ट्री सरकार के बराबर रोजगार सृजित कर रही है…. जिसमे पिछड़े-दलितों की हिस्सेदारी न के बराबर है…._
_मरीज अहीर का, कोयरी का, कुर्मी का, कहार का, कुम्हार का, लोहार का, चमार का, मुसहर का, अनगिनत बिहार की सैकड़ो जातियों का.._
_लेकिन मेडिकल इंडस्ट्री ठाकुर का, ब्राह्मण का, अगड़े बनिया का.. भूमिहार का… अब बताओ हर जगह सरकार ही आपको संभालेगी?_
_इस इंडस्ट्री में अहीर-कोयरी-कुर्मी डॉक्टर भी है.. भले ही आंकड़ा कम है….लेकिन ये अपने लोगों को सपोर्ट नहीं करते है. ये डरते है….._
_इन्हें दवा कंपनियों की स्थापना कर इस सेक्टर में डायवर्सिटी कायम करने से कौन रोकता है?_
_पिछड़ों की सरकार आती है तो ये उम्मीद करते है कि इन्हें मदद मिले, मरीज मिले, लेकिन इस सेक्टर में वंचितों के लिए इनकी कोई महत्वकांक्षा का आपको पता चला है?_
_या ये ओबीसी सिर्फ मेडिकल की पढाई करने भर के लिए रहते है…_
_इन्हें बुलाओ सेमिनारों में……जातीय सम्मेलनों में…..बड़े-बड़े आदर्श भरी बातें कहेंगे.. दूसरों के घरों में भगत सिंह खोजेंगे
लेकिन मेडिकल इंडस्ट्री में स्थापित इस नेक्सस को तोड़ने के लिए ये क्या कर रहे है प्रैक्टिस शुरू करने के लिए फारवर्ड हो या बैकवर्ड, सबको अपनी जाति याद आती है लेकिन जब ये सफल होते है.. तब ये अपनी जाति के लिए क्या करते है सुनिए… ये ठीक से सेल्स रिप्रजेंटेटिव को सपोर्ट भी नही कर पाते है हम यह नहीं कर रहे है कि इनपर सामाजिक जिम्मेदारी है.. इनसे क्रांति की उम्मीद है लेकिन जो जिस सेक्टर में होता है वो वहां अपने लोगों को सपोर्ट तो करता ही है दलित अफसर, ओबीसी अफसर काफी हद तक अपने लोगों का समर्थन करते है लेकिन इन डॉक्टरों को क्या हो जाता है.. भाई? आप समाज के लिए अपनी ही दवा कंपनी बनायें धन की कमी हो तो बैकवर्ड समाज से ही निवेश ले लीजिये.. कुछ तो करिए आखिर क्यों सोशल जस्टिस के धुरंधर मेडिकल इंडस्ट्री में जातीय वर्चस्व पर बोलते नहीं है क्यों दलित, आदिवासी, पिछड़ों के पास रोजगार के सबसे बडे बाजार में स्थापित होने का कोई विजन नहीं है? क्यों आपके लिए सरकार ही सब कुछ है…? देखिए इस बाजार को…. बहुत रोजगार है यहाँ… अगले पच्चीस सालों तक अवसर-ही अवसर है अलग-अलग तरीकों से इस बाजार में पैर ज़माने की कोशिश कीजिये साहब! यहाँ रोजगार सरकार से अधिक है अन्यथा आप लाठी भांजते रहिये, हल चलाते रहिये.. सफेद कुर्ते पैजामा पहन कर इतराते रहिये यह सफेदपोशी गुमान उतरने ही वाला है आपको समझ में ही नहीं आता है कि करें तो क्या करें. आपने राजनीति को पारस पत्थर समझ लिया है यही आपके पिछड़ेपन की निशानी है केन्द्र सरकार, राज्य सरकार चाहकर भी मेडिकल इंडस्ट्री का बाल बांका नहीं कर सकती इस इंडस्ट्री में डायवर्सिटी नहीं है इसके लिए सिर्फ सरकार दोषी नहीं है.. आप भी दोषी है. अपने यथास्थिति से बाहर निकलने के लिए तैयार नहीं है खेत से निकलते हैं तो नौकरी के अलावा कुछ भी दिखाई देता.. ऐसे बदलेगा समाज? सामाजिक परिवर्तन तो छोड़ो आपकी आर्थिक मुक्ति भी गुमनाम है लाखों करोड़ों के बाजार में दखल देने से आपको कौन रोक रहा है? आपके विधायक, सांसद होते है, ये पैसे कमाकर कंस्ट्रक्शन कंपनी खोलने, जमीन के धंधे में उतरने से अधिक सोच नहीं सकते अगड़े वर्ग के कार्यकर्ता विधायक सांसद चुने जाने के पहले ही मेडिकल कॉलेज, तकनीकी कालेज जैसे संस्थानों की आधारशिला डाल देते हैं ऐसे दर्जनों लोग आपके आसपास होंगे.. नजर उठाइए तो सही अंत में किंग महेंद्र, अमरेन्द्र धारी सिंह जैसे लोग पैसे कमाकर राज्यसभा जैसे पदों पर कब्जा जमा लेते हैं वो जानते हैं कि इससे अधिक उन्हें पैसे के बल पर मिल नहीं सकता आपके यहाँ पैसा कमाकर लोग सनकते हैं.. तो सीधे विधायक, सांसद बनना चाहते हैधन की बर्बादी और हंसी का पात्र बन जाने वाले लोगों को हकीकत समझ में आये भी तो कैसे.. पिछड़े जो है।