धीरेंद्र शास्त्री जैसे लोगो का काला सच

धीरेंद्र शास्त्री के 400 करोड़ रुपये से बनने वाले कैंसर अस्पताल का शिलान्यास मोदी जी द्वारा किया गया। अब सवाल उठता है ये इतना पैसा धीरेंद्र के पास आया कहाँ से?
ये पैसा उन मध्यमवर्गीय, गरीब व बेवकूफ लोगों ने दिया है जिनकी हैसियत इस देश, समाज मे न के बराबर है क्योंकि ये लोग न तो आर्थिक रूप से समर्थ हैं ना तो बौध्दिक स्तर से ही। ये लोग जिन ढोंगियों को पैसा देते हैं वे तो अपना साम्राज्य बना लेते हैं लेकिन इन गरीब, मध्यवर्गीय बौद्धिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के जीवन स्तर में कोई सुधार होने के बजाय आर्थिक रूप से और पिछड़ जाते हैं।
आख़िर धीरेंद्र शास्त्री को कैंसर अस्पताल खोलने की जरूरत क्यों पड़ी? जब वो चमत्कारी व्यक्ति है, उसके पास ईश्वरीय शक्ति है तो उसे विज्ञान के रास्ते लोगों का इलाज करने की जरूरत क्यों पड़ रही है? ये बात धीरेंद्र को सोचने की जरूरत नहीं बल्कि उन लोगों को सोचने की जरूरत है जो लोग ऐसे पाखंडी लोगों के चंगुल में फंसकर ऐसे लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करते हैं।
 ऐसे लोगों को यह सोचना चाहिए कि यदि धीरेंद्र शास्त्री एवं ऐसे ही अन्य बाबाओं के पास चमत्कारी, ईश्वरिय शक्ति है तो ये लोग पहले से ही लोगो को बता सकते हैं कि आपको इतने दिन बाद इस तरह का कैंसर होने वाला है, और उन्हें उपाय भी बता सकते हैं कि आप इस तरह के कैंसर से इस उपाय से बच सकते हैं। फिर कैंसर अस्पताल की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। फिर कैंसर अस्पताल की जरूरत क्यों?
जितने भी इस तरह के बाबा हैं वो लोगों को तो बताते हैं कि उनमें ईश्वरीय शक्ति है इससे उनकी हर समस्या का हल है, लेकिन खुद ये लोग लोगों से पैसा लेकर सभी भौतिक सुख-सुविधा को इकट्ठा कर उसका भोग करते हैं। इन्हें कहीं आना-जाना होता है तो विज्ञान द्वारा ईजाद, एरोप्लेन, हेलीकॉप्टर, लग्जरी गाड़ियों का उपयोग करते हैं, एसी में रहते हैं। यदि इनमें चमत्कारी शक्ति होती है तो इन्हें गाड़ी, रेल, जहाज की जरूरत क्यों? ये बस ध्यान लगाएं और गन्तव्य को पहुंच जाएं?
इस बात को सभी बाबा, प्रवचनकर्ता जानते हैं कि उनकी बातें, ढोंग एक छलावा है जिसके जरिए सामान्य लोगों को बेवकूफ बनाकर पैसा एकत्र कर अपना बिजिनेस स्थापित करना है।
अब सवाल उठता है कि आखिर इस तरह के बाबाओं, प्रवचनकर्ताओं का धंधा खूब चल ही रहा होता
 है तो फिर स्कूल, अस्पताल, होटल, फार्महाउस वगैरह जैसे व्यवसाय का साम्राज्य क्यों स्थापित करते हैं?
क्योंकि इन्हें इस बात की शंका हमेशा बनी रहती है कि कब इनके ढोंग का भण्डा फोड़ हो जाये और इनका यह धंधा बंद हो जाये, इसीलिए इस ढोंग के धंधे से जुटाए गए पैसे से समय रहते वास्तविक व्यवसाय को स्थापित कर लेते हैं। इनकी सोच यह भी रहती है कि हो सकता है इसकी अगली पीढ़ी के लोग ढोंग वाले व्यवसाय में खुद को स्थापित न कर पाएं? तो इस स्थिति में उनकी पीढ़ियों के लिए पहले से सबकुछ तैयार रहे।
 अर्थात बाबा, कथावाचक वगैरह अपनी कई पीढ़ियों के व्यवसाय को ध्यान में रखकर सबकुछ करते हैं। और सामान्य लोग बेवकूफ बनकर उन्हें बिन मांगे आर्थिक सहयोग कर आते हैं। इस तरह से ये लोग बिना कर्ज/लोन के ही अपना बिजिनेस खड़ा कर लेते हैं।

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