आँखे बंद करके चलना बंद करो

_*आँखे बंद करके चलना बंद करो…*_
 _हमारा देश गजब का जाति प्रधान देश है और खासतौर पर गाँवो मे तो आज भी जातियाँ ही इसकी सांस्कृतिक पहचान है…_
 _सच्चाई यही है कि आज भी लोग अपने घरो मे, अपने आसपास जाति नाम के कम्फर्ट जोन मे बैठे है…_
 _हर जनरेशन मे जातिवाद कम हुआ है, इससे बिल्कुल इंकार नही है लेकिन दुख इस बात का है कि देश से ये आतंकवाद आजादी के 78 साल बाद तक भी काबु मे आता नही दिख रहा है…_
 _SC-ST Atrocity Act जैसे सख्त कानुन का डर, आरक्षण से मिली नौकरियो के कारण बढ़ती आर्थिक सम्पनता, शिक्षा, केबल टीवी आदि के कारण घरो मे इंट्री मार चुकी आधुनिकता ने काफी हद तक जातिवाद के जहर को कम  तो  किया है लेकिन वो फिर भी नाकाफी है…_
 _एक समय था जब बाबा साहिब अम्बेड़कर ने दलितो और वंचितो के लिए सामाजिक और राजनैतिक संघर्ष शुरू किया तो कांग्रेस जैसे ताकतवर दल और अन्य हिन्दुत्वी संघठनो को जातिवाद के बारे मे सोचने पर मजबुर कर दिया था…._
 _राजनीति मे दलितो की स्वतंत्र राजनीति के लिए एक तरफ डॉ अम्बेड़कर प्रयासरत थे और दूसरी तरफ दलितो की परतंत्र राजनीति मे कांग्रेस ने बाबू जगजीवन राम जैसे नेताओ को अग्रिम पंक्ति मे खड़ा करके जातिवाद जैसे मुद्दे को दबाने की कोशिश की गई…._
 _1956 मे बाबा साहिब अम्बेड़कर की मृत्यु के बाद दलितो की स्वतंत्र राजनीति धीरे धीरे कुछ सालो में ही लगभग खत्म सी हो गई थी…._
 _कांग्रेस और बाबु जगजीवन राम  ने डॉ अम्बेड़कर की दलितो की स्वतंत्र राजनीति वाली विचारधारा से प्रभावित दलित नेताओ को अपनी पार्टी मे मिलाने की कोशिशे तेज करके दलितो की स्वतंत्र राजनीति को लगभग खत्म कर दिया था…._
 _बाबू जगजीवन राम जिंदगी भर दलितो के बड़े नेता के तौर पर फ्रंट पर रहे लेकिन सवाल ये है कि दलितो की सामाजिक हालात के उत्थान के लिए, जातिवाद के खात्मे के लिए क्या कभी कुछ कर पाए  – शायद तो कुछ भी खास नही कर पाए, सवाल फिर वही – आखिर क्यों?_
 _समय बीता और एक बार फिर दलितो की स्वतंत्र राजनीति का बीज एक सरकारी अफसर कांशीराम साहेब नाम के आदमी के रूप मे फुटा, 1978 मे सरकारी कर्मचारियों के लिए बामसेफ नाम का संगठन और डी.एस-4 नामक का सामाजिक संगठन बनाकर मजदुरो, गरीबो, छोटे मोटे काम करके अपना घर चलाने वालो को जोड़ना शुरू किया…._
 _बाद मे 1984 मे बहुजन समाज पार्टी बनाकर दलितो व वंचितो की स्वतंत्र राजनीति की ऐसी धमाकेदार शुरूवात की कि कांग्रेस, जनता दल और भाजपा/जनसंघ जैसे दलो ने दलित आदिवासियो को हाशिये की जगह राजनीति मे महत्वपूर्ण पदो पर बैठाना शुरू करना पड़ा था….._
 _देश मे एक बार फिर जातिवाद और जातिवादी मानसिकता के खिलाफ सामाजिक और राजनैतिक आन्दोलन गति पकड़ने लगे…_
 _कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने 1989 मे दलित आदिवासी उत्पीड़न कानुन (SC – ST Atrocity Act) जैसे कठोर कानुन लाने पड़े ताकि वोट और सत्ता बची रहे लेकिन दलितो की स्वतंत्र राजनीति ने वंचितो मे ऐसी सामाजिक चेतना पैदा की कि केंद्र समेत कई राज्यो के सिंहासन इस नई सामाजिक व राजनीतिक चेतना के कारण डोलने लगे थे…_
 _देखते ही देखते देश के सबसे बड़े राज्य उतरप्रदेश से कांग्रेस कमजोर होती चली गई, भाजपा को भी कोने में धकेलना शुरू हो गया था….._
 _राममंदिर की लहर मे सबसे बड़ी पार्टी बनी भाजपा को भी मान्यवर कांशीराम साहेब की बसपा और मुलायम सिंह यादव की सपा के गठबंधन ने सता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था…_
 _मुलायम सिंह यादव की सरकार बनने पर यादव समाज सता के नशे मे और भी क्रुर जातिवादी बनने लगा था फलस्वरूप 1995 मे बसपा के सहयोग से चल रही  सपा की मुलायम सिंह सरकार को मान्यवर कांशीराम ने गिरा दिया था…._
  _मायावती के सामाजिक और राजनैतिक आन्दोलनो से चेतना जागी, वो आजाद भारत मे इससे पहले कभी नही देखी गई थी…_
 _1995 मे पहली बार भाजपा की मदद से बसपा की सरकार बनी और माननीय मायावती (बहन जी) मुख्यमंत्री बनी | साढ़े चार महीनो मे ही मायावती सरकार ने 1,57,000 गुण्डे, मवालियो, अपराधियो को जेल मे डालकर दलितो को सता और उनकी वोट की ताकत का ऐसा अहसास दलितो और गरीबो को करा दिया था कि अब वो अपनी वोट और अपनी सत्ता की ताकत को समझने लगे थे…._
 _बसपा का वोट बैंक लगातार बढ़ता चला गया और धीरे धीरे यूपी मे सबसे बड़ी पार्टी भाजपा पहले से तीसरे नम्बर पर जाने लगी थी…._
 _1997 और 2002 मे हंग असेम्बली के कारण भाजपा ने मजबूरी मे बसपा को फिर समर्थन देना पड़ा और बहन जी ने फिर बिना किसी के दबाव मे अम्बेड़करवादी विचारधारा के तहत दलित आदिवासी और पिछड़े वर्गो मे जन्मे महापुरुषो के नाम स्कुल, कालेज, हस्पताल खोले, बहुजन प्रेरणा केन्द्र, अम्बेड़कर ग्राम योजना, परिवर्तन चौक, शाशन प्रशासन मे दलितो की भागीदारी, पुलिस थानो मे 20% दलित थाना अध्यक्षो  की तैनाती, दलित आदिवासी उत्पीड़न कानुन का कड़ाई से पालन करने के आदेश, सरकारी जमीन को गरीबो मे बटवाना, जमीन के पट्टो पर सरकारी कब्जा दिलवाना आदि वो काम करवाये थे जिसने दलितो को आत्मसम्मान के साथ जीने की दबी हुई आकांक्षाओ के साथ स्वराज के सपने को जिंदा कर लिया था…._
 _बसपा को दलितो के लगभग एक तरफा वोटो की बदौलत और बाकी जातियो व मुस्लिमो के भी कुछ वोट पाकर 2007 मे बसपा की पहली बार पुर्ण बहुमत की सरकार बनी और मुख्यमंत्री बनकर बहन जी ने अपने बेखौफ और चिर परिचित अंदाज मे समानता और मानवतावादी विचारो को मानने के लिए जातिवादी लोगो को मजबुर कर दिया था और शासन मे दलितो की सुनवाई होने पर दलितो मे जातिवादी मानसिकता से लड़ने का हौसला भी पैदा कर दिया था…._
 _बहन जी को जातिवाद के कम्फर्ट जोन मे बैठा आदमी जातिवादी कहता रहा है…. लेकिन उन्होने मान्यवर कांशीराम की नीति “जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उतनी उसकी भागेदारी” के तहत दलितो के साथ साथ ब्राहमणो, ठाकुरो, बनियो, मुस्लिमो, जाटो, गुर्जरो, यादवो व अन्य पिछड़ी जाति के नेताओ को मंत्रीमंडल व शासन प्रशासन मे जगह उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से भागेदारी दी…._
 _आज कुछ स्वार्थी और जातिवादी मानसिकता मे डुबे दलित वर्गो के लोग कांशीराम साहेब की फोटो लिए कहते फिरते है कि बहन जी ने कांशीराम की पार्टी को ब्राहमणो को बेच दिया है…._
 _मेरा सुझाव है कि वो एक बार मान्यवर कांशीराम के विचारो और संघर्षो के बारे मे जान ले कि वो  सामाजिक क्रांति मे समानता और मानवता के पक्षधर थे, घोर जाति विरोधी थे,  घोर मनुवाद विरोधी थे, वो ब्राह्मण या किसी भी जाति के विरोध मे कभी नही थे बल्कि वो तो दलितो की चमचागिरि के खिलाफ थे, दलितो की वोटो के दलालो और दलितो के दब्बुपन के विरोध मे थे…._
 _*👉🏻 ध्यान रहे–दलितो तुम्हारा जातिवादी होना डॉ अम्बेड़कर के विचारो के खिलाफ है, कांशीराम साहेब के विचारो के खिलाफ है….*_
 _उन्होने लोगो को आत्मसम्मान से जीने की प्रेरणा दी है और दलितो को जातिवादी लोगो के सामने खड़ा होने का हौसला दिया है…_
 _लेकिन वो कभी भी लठ लेकर किसी गाड़ी पर खड़े नही हुए थे, ना गाली गलौच वाले कल्चर के तहत माहौल खराब करने के पक्षधर थे और ना ही किसी जाति विशेष के प्रति जहर फैलाने मे लगे रहते थे…._
 _वो समाज मे बदलाव के लिए राजनीति को सिर्फ साधन मानने वाले लोग रहे है…._
 _इनको अगर मंत्री आदि बनने का शौक होता तो कांशीराम साहेब तो कब के कोई कैबिनेट मंत्री या राष्ट्रपति आदि बन चुके होते और बहन जी भी आज केंद्र मे कैबिनेट मिनिस्टर आसानी से बन सकती थी लेकिन सामाजिक परिवर्तन की इस लड़ाई में फिर इनकी हैसियत ही कितनी रहती, सिर्फ एक सांसद बनने के जुगाड़ में रहने वाले फलाने ढिमकाने भड़काऊ नेताओं की तरह…._

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